ई-श्रम कार्ड से असंगठित श्रमिकों की जिंदगी में आएगा बदलाव, जानें क्यों है जरूरी
Read Moreदुनियाभर में भारतीय श्री अन्न को नई पहचान मिलें इसके लिए केंद सरकार हर संभव प्रयास कर रही है। हाल ही में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर द्वारा अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष के अंतर्गत आयोजित दो दिवसीय नेशनल मिलेट कांफ्रेंस के शुभारंभ समारोह में कहा कि श्री अन्न (मिलेट) आज की जरूरत है, क्योंकि ये पोषक तत्वों से भरपूर होते है। वर्तमान परिवेश में घर हो या बाहर हमारे पास भोजन तो उपलब्ध है, लेकिन उसमें जरूरत के हिसाब से पोषक तत्वों की कमी है। पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में भोजन रहे, इसके लिए थाली में श्री अन्न होना जरूरी है।
मोटे अनाजों की खपत बढ़ाने के लिए भारत ने किए कारगर उपाय
केंद्रीय मंत्री तोमर ने आगे कहा कि हम जानते हैं कि दुनिया में मिलेट विशिष्ट उत्पादन के रूप में उत्पादित होता रहा है। समय के साथ मिलेट का भोजन की थाली में स्थान कम होता गया और इसकी प्रतिस्पर्धा समाप्त हो गई। मिलेट को पुनः बढ़ावा मिले और इसका उपयोग बढ़े, इसे लेकर प्रयास किए जा रहे हैं। नीति आयोग और वर्ल्ड फूड प्रोग्राम भारत और विदेश में मोटे अनाजों की खपत और उत्पादन बढ़ाने के लिए कारगर उपायों पर काम कर रही है। नीति आयोग और वर्ल्ड फूड प्रोग्राम (WFP) ने ‘मैपिंग एंड एक्सचेंज ऑफ गुड प्रैक्टिसेस’ नामक पहल शुरू की है। जिसके अंतर्गत एशिया और अफ्रीका में कदन्न (मोटे अनाज) को मुख्यधारा में लाने की कोशिश की जा रही है।
मिलेट के उपयोग से होगा छोटे किसानों को फायदा
श्री तोमर ने कहा कि मिलेट फसल वर्षा आधारित होती है, जिसे कम खर्च व कम पानी में उगा सकते है। गरीब किसान बंजर धरती में इसका उत्पादन कर सकते है। मिलेट का उपयोग जितना बढ़ेगा, भोजन में उतने पोषक तत्व मिलेंगे, जिसका फायदा लोगों को होगा। मिलेट का उपयोग दुनिया में बढ़ेगा तो प्रोसेसिंग बढ़ेगी, निर्यात बढ़ेगा, जिसका लाभ छोटे किसानों को होगा और उनकी माली हालत सुधारने में सफलता मिलेगी। यह मिलेट ईयर इस दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है।
2000 स्टार्टअप मिलेट से संबंधित
आज कृषि क्षेत्र में करीब 2000 स्टार्टअप काम कर रहे हैं, जिनमें अधिकांश मिलेट से संबंधित हैं। इन स्टार्टअप्स से लगभग 4 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा के कृषि उत्पादों का निर्यात हुआ, जिनमें अधिकांश हिस्सा आर्गनिक व मिलेट का है।
भारत का मिलेट्स उत्पादन एशिया का 80 प्रतिशत
पोषक अनाज (मिलेट्स) जलवायु प्रतिरोधक क्षमता वाली फसल हैं, जो 131 देशों में उगाई जाती हैं। यह भोजन के लिए उगाई जाने वाली अनाज की प्रथम फसल है, जिसके सिंधु सभ्यता में पाए गए सबसे पहले प्रमाण 3,000 ईसा पूर्व के हैं। एशिया और अफ्रीका में लगभग 59 करोड़ लोगों के लिए यह पारंपरिक भोजन है। इसमें बाजरा, ज्वार, रागी/मंडुवा, कांगनी, कोदो, कुटकी, चीना, सावां, ब्राउनटाप मिलेट, टेफ्फ मिलेट, फोनीओ मिलेट शामिल है। भारत में लगभग 140 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में लगभग पौने दो सौ लाख टन मिलेट्स का उत्पादन होता है, वहीं वैश्विक परिदृश्य 717 लाख हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र में लगभग 863 लाख टन मिलेट्स उत्पादन का है। भारत का मिलेट्स उत्पादन एशिया का 80 प्रतिशत एवं वैश्विक उत्पादन का 20 प्रतिशत है।
वैश्विक स्तर पर बाजार
बाजरे की असाधारण क्षमता, जो संयुक्त राष्ट्र के कई सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के अनुरुप है, को मान्यता प्रदान करते हुए भारत सरकार ने इसे प्राथमिकता दी है। कृषि और किसान कल्याण विभाग ने आईवाईएम- 2023 के उद्देश्य को प्राप्त करने और भारतीय बाजरा को वैश्विक स्तर पर ले जाने के लिए एक सक्रिय बहु-हितधारक जुड़ाव का दृष्टिकोण अपनाया है। इसके लिए इसमें केंद्र सरकार के सभी मंत्रालय, राज्य/केंद्रशासित प्रदेश, किसान, स्टार्ट-अप्स, निर्यातक, खुदरा व्यवसाय, होटल और भारतीय दूतावासों आदि को शामिल किया गया है। 2021-2026 की पूर्वानुमान अवधि के दौरान वैश्विक बाजार में बाजरे की बढ़ोतरी की दर (सीएजीआर) 4.5 फीसदी रहने का अनुमान है।
G20 में मिलेट को प्राथमिकता
भारत की अगुवाई में वर्ष 2023 को पूरी दुनिया मिलेट ईयर के रूप में मना रही है। इसके अलावा, इस वर्ष देशभर के लगभग 50 शहरों में G20 की बैठकें आयोजित होना हैं, जिनमें विदेशों के लगभग दो लाख लोग भारत आएंगे। पीएम मोदी के निर्देशन में G20 की बैठकों के माध्यम से भी मिलेट के प्रचार-प्रसार की योजना तैयार की गई है। G20 के सभी कार्यक्रमों में, भोजन में मिलेट को प्राथमिकता दी जा रही है, ताकि जब ये लोग अपने देश लौटे तो यहां से भोजन का अच्छा स्वाद लेकर जाएं और दुनियाभर में भारतीय श्री अन्न को नई पहचान मिलें।
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