Bad luck comes from having these things at the main door of the house, the person remains buried under debt.
Read Moreमथुरा। वृंदावन में बसेरा ग्रुप के वृंदावन गार्डन होटल में हुए अग्निकांड को लेकर सरकारी विभागों ने वह सब करना शुरू कर दिया है जैसा हमेशा होता रहा है। अग्निशमन विभाग ने पल्ला झाड़ लिया है। विभाग की ओर से साफ कर दिया गया है कि होटल अग्निशमन विभाग की एनओसी के बिना चल रहा था। वहीं बसेरा ग्रुप के कर्ताधर्ताओं ने कहा है कि कर्मचारी अपनी गलती से मरे हैं। होटल प्रशासन की ओर से कहा गया है कि स्टोर रूम में गुरुवार की सुबह आग लग गई। जिसमें होटल के ही दो कर्मचारियों की आग में झुलस कर मौत हो गई है। वहीं एक कर्मचारी का आगरा में इलाज हो रहा है। उन्होंने बताया कि आग लगने के कारण से करीब एक लाख रुपये का नुकसान हुआ है और उन्होंने कहा कि जिन कर्मचारियों की मौत हुई है। उनको रात में सोने के लिए अलग स्थान प्रदान किया गया था, लेकिन वह लोग ना जाने कब गोदाम में पहुंच गए और वहां पहुंच कर उन्होंने मदिरापान किया और मच्छरों से बचने के लिए अगरबत्ती जला दी। वहीं दूसरी ओर अग्निशमन विभाग ने साफ कर दिया है कि होटल के पास विभाग की कोई एनओसी नहीं है। होटल को विभाग की ओर से नोटिस भी भेजा गया था।
वर्जन
होटल के पास अग्निशमन विभाग की एनओसी नहीं थी। होटल में विभाग की टीम ने चेकिंग की थी। इसके बाद मानक पूरा करने के लिए नोटिस भी भेजा गया था। दो की मौत हुई, तीसरा व्यक्ति करीब 70 प्रतिशत झुलस गया है। उसका इलाज चल रहा है।
प्रमोद शर्मा, सीएमओ मथुरा
वर्जन
अग्निकांड से करीब एक लाख का नुकसान हुआ है। मृतक कर्मचारी नियमित नहीं थे, कर्मचारी होटल में आते जाते रहते हैं। हमारे पास होटल चलाने और अग्निशमन विभाग की अनुमति है। अग्निशमन सिस्टम लगा हुआ है कोई कमी नहीं है।
अजय मित्तल, जीएम बसेरा ग्रुप
मुख्यमंत्री तक पहुंचा होटल में हुए अग्निकांड का मामला
मथुरा। वृंदावन गार्डन होटल में हुए अग्निकांड का मामला मुख्यमंत्री तक पहुंच गया है। कांग्रेस जिलाध्यक्ष भगवान सिंह वर्मा ने अग्निकांड की जांच कराए जाने और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही किए जाने की मांग मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से की है। मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में कांग्रेस जिलाध्यक्ष ने कहा है कि होटल संचालकों के पास न तो अग्निशमन विभाग की एनओसी थी और नहीं मथुरा वृंदावन विकास प्राधिकरण से कोई मानत्रित पास कराया गया। फायर बिग्रेड एवं एमवीडीए के अधिकारियों की मिलीभगत से भ्रष्टाचार हो रहा था। दो मजदूरों की मौत के बाद परिवारों के सामने विकट स्थिति पैदा हो गई है। होटल में ठहरे लोगों की जिंदगी को भी खतरे में डाला गया। विभाग के अधिकारियों और होटल संचालकों के खिलाफ सख्त कार्यवाही की जाए और इनके खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया जाना चाहिए।
मलालः जनप्रतिनिधि ज्वलंत मुद्दों पर साध जाते हैं मौन
मथुरा। जनप्रतिनिधि कभी इस तरह के ज्वलंत मुद्दों को नहीं उठाते हैं। महीनों चली कवायद पर जनप्रतिनिधियों की ओर से कोई संज्ञान तक नहीं लिया गया। अब सबके पास सरकारी काम में अडचन न आए और सब अपना काम कर रहे हैं जैसे रटे रटाए बहाने हैं। धार्मिक पर्यटन के लिए महत्वपूर्ण नगरी में होटल, मोटल, हॉस्पिटल, हाइराजिंग बिल्डिंग की सुरक्षा के मुद्दे की ओर हाल फिलहाल उस समय ध्यान गया जब पांच सितम्बर को. लखनऊ के होटल लेवाना में आग लगी। इसके ठीक एक महीने बाद पांच अक्टूबर को आगरा के मधुराज हॉस्पिटल में अग्निकांड हुआ तो मामला मथुरा के और नजदीक आ गया। इसके बाद मथुरा जनपद में अग्निशमन विभाग ने हॉस्पिटल के खिलाफ अभियान छेडा और पूर्व के सर्वे के आधार पर चिन्हत 69 हाॅस्पीटल ऐसे थे जिनमें अग्निशमन को लेकर विभाग के मुताबिक मुकम्मल इंतजामात नहीं थे। हालांकि इस तरह की 250 से अधिक बिल्डिंग को चयनित किया गया था। जिनमें आग लगने की स्थिति में सुरक्षा की दृष्टि से पर्याप्त इंतजामात की कमी पाई गई थी। कार्यवाही की शुरुआत हॉस्पिटल से हुई। देहात से शहर तक आधा दर्जन हॉस्पिटल के खिलाफ सीज करने की कार्यवाही अमल में लाई गयी। इस कार्यवाही के दौरान हॉस्पिटल की ओपीडी को सीज किया गया। कुछ हाॅस्पीटल को नोटिस भी थमाए गए थे। वहीं होटलों के खिलाफ कोई निर्णायक कार्यवाही नहीं की गई। हाॅस्पीटल में भर्ती मरीजों के इलाज का मनवीय पहलू भी कार्यवाही के दौरान जुडा होता है ऐसे में सिर्फ ओपीडी को ही सीज किया जा सका था। होटलों पर कार्यवाही के दौरान इस तरह का कोई पहलू नहीं होता है और त्वरित गति से कार्यवाही संभव है लेकिन इस ओर काम करने की हिम्मत जिला प्रशासन जुटा नहीं सका। जनपद में अधिकांश होटल प्रभावशाली लोगों के हैं। राजनीतिक रूप से मजबूत लोगों के होटलों की संख्या भी कम नहीं है। वहीं हाईराजिंग बिल्डिंग पर कार्यवाही को लेकर भी कमोबेश यही स्थिति है। महीनों चली इस कवायद पर जनप्रतिनिधि मौन साधे रहे। जबकि उम्मीद यही की जाती है कि इस तरह के ज्वलंत मुद्दों पर जनप्रतिनिधि संज्ञान लेंगे और उनके प्रयासों का का सम्मान होगा।
भ्रष्टाचारः चलो हो गईं दो मौत, अब भी जाग जाए प्रशासन तो बहुत!
-अधिकारियों की कुछ करने की मंशा ही नहीं, एक दूसरे पर डाल रहे जिम्मेदारी
मथुरा। जो नक्शा पास है निर्माण उसके मुताबिक नहीं, आवासीय क्षेत्रों में काॅमर्शिय गतिविधियों वाली बिल्डिंग, यहां तक कुंज गलियों में जहां आपात स्थिति में सहायता कर्मियों का उपकरणों के साथ आसानी से पहुंचा संभव नहीं उन जगहों पर होटल, हाॅस्पीटल जैसी गतिविधियों का संचालन यह सब अधिकारियों की नजर से छुपा नहीं है। लेकिन इनके खिलाफ कार्यवाही भी नहीं होती है। किसी बड़ी घटना के बाद आनन फानन में कुछ आदेश जारी किए जाते हैं। कुछ एक कार्यवाही भी त्वरित गति से अंजाम दी जाती हैं। इसके बाद सब कुछ पहले जैसा ही रहता है। खादर में बसीं दर्जनों नहीं बल्कि कई सैकड़ा कालोनियों का मामला हो अथवा नक्शा के मुताबिक महत्वपूर्ण भवनों के निर्माण का मामला सब ठंडे बस्ते में चला जाता है। अधिकारी अपनी गर्दन बचाने के लिए कुछ एक नोटिस भेजने जैसी कार्यवाही जरूर बीच बीच में करते रहते हैं। हाल ही में यमुना किनारे हुए कई किलोमीटर के अतिक्रमण को लेकर नगर निगम की ओर से की गई कार्यवाही भी इसका अपवाद नहीं है। वहीं इमारतों की सुरक्षा के संबंध में अग्निशमन सहित जिला प्रशासन के कई विभागों की संयुक्त कार्यवाही भी उसी ढर्रे पर आगे बढी है। विभागों की जडता तब टूटती है जब कोई बड़ा हादसा हो जाता है। होटल, हॉस्पिटल, हाइराजिंग बिल्डिंग, मोटल आदि के खिलाफ वृंदावन के होटल में हुए अग्निकांड के बाद जिला प्रशासन कुछ कठोर कदम उठाएगा इस बात की उम्मीद ही की जा सकती है। हालांकि मामले पर लीपापोती के प्रयास शुरू हो जाएंगे इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता है। जिम्मेदार विभाग अपनी गर्दन बचाने के लिए जिम्मेदारी एक दूसरे पर डालने लगे हैं।
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