Bad luck comes from having these things at the main door of the house, the person remains buried under debt.
Read Moreकार्तिक मास की कृष्ण त्रयोदशी को धनतेरस कहते हैंl यह त्यौहार दीपावली आने की पूर्व सूचना देता है lइस दिन नए बर्तन खरीदना शुभ माना जाता हैl भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य का स्थान धन से ऊपर माना जाता रहा है lयह कहावत आज भी प्रचलित है,
कि पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया, इसलिए दीपावली में सबसे पहले धनतेरस को महत्व दिया जाता है lजो भारतीय संस्कृति के हिसाब से बिल्कुल अनुकूल हैl
शास्त्रों में वर्णित कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन भगवान धन्वंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए मान्यता यह है, कि भगवान धन्वंतरि विष्णु के अंश अवतार हैंl संसार में चिकित
पिछे का कारण तों है कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां निशामुखे ।
यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनिश्यति ।।
– स्कंदपुराण
इसका अर्थ है, कार्तिक मासके कृष्णपक्षकी त्रयोदशीके दिन सायंकालमें घरके बाहर यमदेवके उद्देश्यसे दीप रखनेसे अपमृत्युका निवारण होता है
तों अप मृत्यु का निवारण हो ,
जरा,भय, व्याधि का निवारण हो
घर में धन धन की वृद्धि हो
यही सब पीछे के कारण है
धनतेरस जिसको धनत्रोयदशी के नाम से भी जाना जाता है। धनतेरस कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन मनाया जाता है, क्योंकि इस तिथि को भगवान धन्वंतरि का जन्म हुआ था। धनतेरस पर प्रमुख रूप से भगवान धन्वंतरि का पूजन किया जाता है, क्योंकि वह आयुर्वेद के देवता हैं, जिन्होंने मानव जाति की भलाई हेतु आयुर्वेद का ज्ञान दिया और बीमारियों तथा कष्टों से छुटकारा पाने में मानव समाज की मदद की ।
जैन आगम में धनतेरस को 'धन्य तेरस' या 'ध्यान तेरस' भी कहते हैं। भगवान महावीर इस दिन तीसरे और चौथे ध्यान में जाने के लिये योग निरोध के लिये चले गये थे। तीन दिन के ध्यान के बाद योग निरोध करते हुये दीपावली के दिन निर्वाण को प्राप्त हुये। तभी से यह दिन धन्य तेरस के नाम से प्रसिद्ध हुआ
आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि के जन्म दिवस को भारत सरकार के द्वारा 2016 से राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाने का निर्णय किया गया है।
इसके अलावा इस त्योहार को मनाने के पीछे कई मान्यताएं व कथाएं प्रचलित हैं।
मान्यताएं - धनतेरस के दिन ही समुद्र-मंथन से भगवान धन्वंतरि का अवतरण हुआ था। भगवान धन्वंतरि के एक हाथ में अमृत से भरा कलश और दूसरे हाथ में आयुर्विज्ञान का पवित्र ग्रंथ था। उन्हें देवताओं का वैद्य माना जाता है। भगवान धन्वंतरि चूंकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। कहीं कहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें तेरह गुणा वृद्धि होती है। इस अवसर पर लोग धनिया के बीज खरीद कर भी घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं।
डा0पीयूष त्रिवेदी आयुर्वेद चिकित्सा प्रभारी राजस्थान विधान सभा जयपुर।
9828011871.
साभार-khaskhabar.com
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