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जानिए क्यों चर्चा में है 'घोड़ा लाइब्रेरी', आखिर क्या है इसके मायने ?

'घोड़ा लाइब्रेरी' को लेकर खूब चर्चा हो रही है। दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा रविवार को 'मन की बात' श्रृंखला के 105वें एपिसोड में इसका जिक्र किया गया। जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट होता है कि यहां किसी पुस्तकालय की बात हो रही है। इसके साथ 'घोड़ा' शब्द क्यों जुड़ा है, इसकी भी एक एक अनूठी कहानी है। महज इतना ही नहीं, यह 'घोड़ा लाइब्रेरी' आज लोगों के लिए एक मिसाल बन गई है। 

ऐसे आया 'घोड़ा लाइब्रेरी” खोलने का विचार

जी हां, नैनीताल की 'घोड़ा लाइब्रेरी' अपने अनूठे शिक्षा अभियान विस्तार कार्यक्रम के लिए जानी जा रही है। इसे चलाने का फैसला इसके प्रवर्तक शुभम बधानी ने किया, ताकि ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों और नवीन जानकारी से वंचित बच्चों को शिक्षा प्रदान की जा सके। आज सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में इसका भरपूर लाभ उठाया जा सकता है। “घोड़ा लाइब्रेरी” को खोलने का विचार भी प्रतिकूल भौगोलिक परिस्थितियों और राज्य के कठिन संपर्क मार्ग को देखते हुए ही आया था।

सुदूर क्षेत्रों में चलाया जा रहा अभियान

चूंकि घोड़े, इन कठिन क्षेत्रों में आसानी से काम कर सकते हैं, इसलिए उनका उपयोग इस उद्देश्य के लिए किया गया है। इस साल 12 जून को 'मोबाइल हॉर्स लाइब्रेरी' अभियान शुरू किया गया। इस लाइब्रेरी के माध्यम से एक दौर में बच्चों को किताबें जारी की जाती हैं और अगले दौर में एक सप्ताह के बाद पुरानी किताबें वापस ले ली जाती हैं और नई किताबें फिर से जारी की जाती हैं। 

बच्चों के लिए खोल रहा बाहर की दुनिया के द्वार

शहरी क्षेत्रों की बात करें तो वहां लोगों को अपना ज्ञान बढ़ाने के लिए तमाम साधन उपलब्ध हैं जैसे टीवी, विशाल पुस्तकालय या कार्यशालाएं और प्रशिक्षक इत्यादि। इनके माध्यम से शहरी निवासियों को तमाम जानकारी आसानी से मिल जाती हैं, लेकिन ग्रामीण बच्चों के लिए, कहीं न कहीं एक रैंडम किताब हाथ लग जाने से ही उनके लिए बाहर की दुनिया के लिए एक नई खिड़की खुल जाती है। 

सुदूर इलाकों में बच्चों की शिक्षा सबसे बड़ी चिंता का विषय है। अभी भी सैकड़ों दूरदराज के गांव ऐसे हैं जो इंटरनेट या सोशल मीडिया से नहीं जुड़े हैं। अभी भी लाखों बच्चे हैं जो बाहरी दुनिया के बारे में जानने के लिए उत्सुक हैं। ऐसे में इन्हें किताब पढ़ने का मौका मिलना एक सपने के सच होने जैसा है।

नारद संवाद


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