Bad luck comes from having these things at the main door of the house, the person remains buried under debt.
Read Moreकोमल और बाल मन बचपन में जोर राह पकड़ लेती है, उन्हें बाद में बदलना काफी मुश्किल होता है। वैसे भी हमारे देश में बच्चों को भगवान का रूप माना जाता है, लेकिन मौजूदा दौर में इस सोच के साथ काफी भिन्नता देखने को मिलती है। अगर ध्यान से देखें तो होटल में टेबल साफ करते हुए, रोड किनारे सामान बेचते या चाय की दुकान पर छोटू, बबलू नाम से अक्सर 10 से 15 साल के बच्चे दिख जाते हैं। इनमें कई ऐसे हैं, जो पेट की भूख को शांत करने के लिए काम करते हैं, तो कईयों का परिवार उन्हें बाल श्रम में धकेल देता है। इसी में कई बच्चे चाइल्ड ट्रैफिकिंग के शिकार भी हो जाते हैं। ऐसे ही बच्चों के बचपन और उनकी मासूमियत को बचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहल की जाती है और हर साल 12 जून को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस मनाया जाता है।
बाल श्रम उन्नमूलन में केंद्र सरकार के कार्यक्रम
बाल श्रम आमतौर पर मजदूरी के भुगतान के बिना या भुगतान के साथ बच्चों से शारीरिक कार्य कराना है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। लेकिन बाल श्रम को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के कन्वेंशन नंबर 182 अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत कई कानून बनाए हैं, जिसका उद्देश्य बाल श्रम को समाप्त करना है। पिछले कुछ साल से केंद्र सरकार ने इस दिशा में सराहनीय कदम उठाए हैं। बच्चों के विकास और उनके बचपन को संवारने और उत्थान के लिए कई प्रभावी योजनाएं शुरू की गई हैं। साथ ही कनून भी लाये गए। शिक्षा का अधिकार भी इस दिशा में एक सराहनीय कार्य है। हालाकि कोरोना की वजह से कई बच्चों को सिर से अचानक मां-बाप का साया उठ गया, जिनमें से कई निराश्रित तक हो गए। ऐसे में केंद्र सरकार इन बच्चों को लेकर काफी सजग रही और हाल ही में पीएम केयर फॉर चिल्ड्रेन के तहत मदद मुहैया कराया गया है। फिर भी बाल श्रम की समस्या अभी भी एक बड़ी समस्या के रूप में मौजूद है।
चिल्ड्रेन इन स्ट्रीट सिचुएशन की शुरुआत
बाल श्रम को रोकने और उन्मूलन के लिए केंद्र सरकार सजग है। हाल ही में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की ओर से कई कार्यक्रमों की शुरुआत की गई। इसमें बाल स्वराज पोर्टल के तहत सीआईएसएस एप्लीकेशन यानि चिल्ड्रेन इन स्ट्रीट सिचुएशन की शुरुआत की गई है। इसका उद्देश्य सड़क पर रहने वाले बच्चों के पुनर्वास में सहायता करना है।
दरअसल, एनसीपीसीआर ने देखभाल और सुरक्षा की जरूरत वाले बच्चों की ऑनलाइन निगरानी और डिजिटल रीयल-टाइम निगरानी तंत्र के लिए बाल स्वराज पोर्टल को शुरू किया है। इस पोर्टल के दो कार्य हैं- कोविड देखभाल और सीआईएसएस। कोविड देखभाल लिंक उन बच्चों की देखभाल को लेकर है, जिनके माता-पिता, दोनों कोविड-19 के कारण या मार्च 2020 के बाद नहीं रहें। यह बच्चों के पुनर्वास के लिए छह चरणों के ढांचे का अनुसरण करता है।
–पहला चरण बच्चे के विवरण का संग्रह है, जिसे पोर्टल के माध्यम से पूरा किया जाता है।
–दूसरा चरण सामाजिक जांच रिपोर्ट (एसआईआर) है यानी कि बच्चे की पृष्ठभूमि की जांच से संबंधित है। यह काम जिला बाल संरक्षण इकाई (डीसीपीयू) की निगरानी में जिला बाल संरक्षण अधिकारी (डीसीपीओ) बच्चे से बातचीत और परामर्श करके पूरा करते हैं।
–तीसरा चरण बच्चे के लिए एक व्यक्तिगत देखभाल योजना (आईसीपी) तैयार करना है।
–चौथे चरण सीडब्ल्यूसी को सौंपे गए एसआईआर के आधार पर बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) का आदेश है।
–पांचवां चरण उन योजनाओं और लाभों का आवंटन करना है, जिनका लाभार्थी लाभ उठा सकते हैं
–छठे चरण में प्रगति के मूल्यांकन के लिए एक जांच सूची यानी कि फॉलो अप्स बनाई जाती है।
एनसीपीसीआर की ओर से विकसित यह पोर्टल भारत में सड़क पर रहने वाले बच्चों की सहायता करने के लिए अपनी तरह की पहली पहल है। सीआईएसएस एप्लिकेशन का उपयोग सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से सड़क पर रहने वाले बच्चों के डेटा प्राप्त करने, उनके बचाव और पुनर्वास प्रक्रिया पर नजर रखने के लिए किया जाता है। यह पहल भारत के सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशन में की गई है।
पीएम केयर्स फॉर चिल्ड्रेन
इस योजना का उद्देश्य कोविड-19 महामारी में माता-पिता या कानूनी अभिभावक या दत्तक माता-पिता खो चुके बच्चों को मदद मुहैया कराना है। इन बच्चों की व्यापक देखभाल और सतत तरीके से सुरक्षा सुनिश्चित करना है। इसमें उन्हें रहने की सुविधा प्रदान करना, उन्हें शिक्षा और छात्रवृत्ति के माध्यम से सशक्त बनाना, उन्हें आत्मनिर्भर अस्तित्व के लिए तैयार करना शामिल है। योजना के तहत बच्चों को 23 वर्ष की आयु प्राप्त करने पर 10 लाख रुपये की वित्तीय सहायता और इस दौरान स्वास्थ्य बीमा भी दिया जाएगा।
बाल श्रम को रोकने के लिए कानून
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