Bad luck comes from having these things at the main door of the house, the person remains buried under debt.
Read Moreनई दिल्ली । दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने केंद्रीय कैबिनेट द्वारा स्वीकृत की गई नई शिक्षा नीति को 'हाईली रेगुलेटेड और पुअरली फंडेड' करार दिया है। दिल्ली सरकार का मानना है कि नई शिक्षा नीति में अत्यधिक नियमन और इन्स्पेक्शन की व्यवस्था है जबकि फंडिंग का ठोस कमिटमेंट नहीं किया गया है। सिसोदिया ने कहा, "नई शिक्षा नीति पुरानी समझ और पुरानी परंपरा के बोझ से दबी हुई है। इसमें सोच तो नई है पर जिन सुधारों की बात की गई है, उन्हें कैसे हासिल किया जाए, इस पर यह चुप या भ्रमित है।"
सिसोदिया के अनुसार नई शिक्षा नीति में राज्य स्तर पर एक शिक्षा विभाग, एक निदेशालय, एक रेगुलेटरी अथॉरिटी, एक शिक्षा आयोग, एससीईआरटी और शिक्षा बोर्ड जैसे निकाय होंगे। सिसोदिया ने आशंका जताई है कि इतनी सारी एजेंसियां आपस में उलझेंगी, तो शिक्षा का काम कैसे होगा।
सिसोदिया ने कहा, "राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिक्षा पर जीडीपी का 6 प्रतिशत खर्च करने की बात कही गई है। यह बात 1966 से कोठारी कमीशन के समय से ही कही जा रही है। लेकिन यह लागू कैसे हो, इस पर पॉलिसी चुप है। इसको लेकर कोई कानून बनाने की बात नहीं कही गई है।"
सिसोदिया ने कहा, "12 वीं तक की शिक्षा 'राइट तो एजुकेशन ऐक्ट' के तहत लाने पर भी इस पॉलिसी में स्पष्ट नहीं कहा गया है। अभी शिक्षा का कानून के तहत आठवीं तक शिक्षा फ्री है। छह साल में बनाई गई इस शिक्षा नीति में अगर आपने फन्डिंग और कानूनी दायरे जैसे बुनियादी प्रश्न ही हल नहीं किया, तो शिक्षा नीति का कार्यान्वयन मुश्किल है।"
दिल्ली सरकार ने पूर्व प्राथमिक शिक्षा को फॉर्मल शिक्षा के दायरे में लाने तथा ब्रेकफास्ट की व्यवस्था को उचित कदम बताया। बच्चों के लिए विषयों और कोर्स के विकल्प खोलने, मातृभाषा में शिक्षा तथा बीएड को चार साल करने को भी केजरीवाल सरकार ने उचित करार दिया।
सिसोदिया ने बच्चों को उच्चस्तरीय गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना सरकार का दायित्व बताया। उन्होंने कहा, "पूरी दुनिया में जहां भी अच्छी शिक्षा व्यवस्था है, वहां सरकार खुद इसकी जिम्मेवारी लेती है। लेकिन इस शिक्षा व्यवस्था में सरकारी स्कूल सिस्टम को इस जिम्मेदारी को लेने पर सीधा जोर नहीं दिया गया है। बल्कि इसमें प्राइवेट संस्थानों को बढ़ावा देने की बात कही गई है। सिसोदिया के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने भी प्राइवेट संस्थाओं को शिक्षा की दुकान करार दिया था। इसलिए हमें प्राइवेट स्कूलों के बदले सरकारी शिक्षा पर जोर देना चाहिए।"
साभार-khaskhabar.com